राजस्थान के कई गावों में जीवन आज भी वैसे ही चल रहा है, जैसे 100 साल पहले. सरकार की लाख रोक के बाद भी बाल विवाह आज भी होते हैं. आज मिलाते हैं आपको इस बालिका वधू – किन्नू से, कुछ कुछ वैसी ही जैसे आपने सीरियल के शुरुआत में देखी होगी. शादी के तीन माह बाद मुझे मिली, पीहर जाती हुई. एक बच्ची, दुल्हन का वेश, सर ढका हुआ, गहनों से लदी और चेहरे पर घर जाने की ख़ुशी !! हम जब बच्चे थे तो ट्रेन में बैठना बेहद रोमांचकारी होता था. कुछ वैसे ही रोमांच से भरी हमें मिली हमारी ये बालिका वधू. उम्र 12 वर्ष. बाल सुलभ चंचलता से भरी पर दुल्हन के संस्कार भी. उसे कोल्ड ड्रिंक पीना था और पीते ही बहुत खुश!! ट्रेन से बाहर के हर दृश्य को देखने की बेहद उत्सुकता के रोमांच से पुलकित होती हुई. हर लड़की में एक माँ हमेशा रहती है, तो साथ बैठे उसे लेकर जा रहे चाचा के 6-7 वर्ष के बेटे, यानि उसके भाई की चिंता भी! छोटा है, इसे भूख लगी होगी, क्या खिलाऊं उसको? यूँ बेहद खुश थी – शादी से भी खुश, पर दुल्हन की जिम्मेदारियों से बेख़बर. शायद नए कपड़े, नए जेवर, व मिठाइयों की ख़ुशी. पति और ससुराल का जिक्र करते ही शर्मा जाती थी.
आप कह सकते हैं, ये सब गलत हो रहा है. पर इस लगभग अनपढ़ व पूर्ण ग्रामीण, मध्य-युगीन परिवेश की बालिका वधू के लिए ये सब सामान्य था. सीरियल से कम्पेयर न करें ! उसमें ड्रामा भी होता है और अतिशियोक्ति भी. ग्रामीण समाज में न तो स्त्री-पुरुष की समानता की बात होती है, न ही अधिकारों की !! बस एक परम्परा, एक सम्बन्ध जो मृत्यु पर ही खत्म होता है !! हो सकता है किन्नू एक ख़ुशगवार ज़िन्दगी गुज़ारे, जिसकी सम्भावना ज्यादा है, क्यूंकि उसकी आशाएं, अपेक्षाएं और उड़ानें बेहद सीमित हैं. वो उसके पुरुष प्रधान समाज से लड़ेगी नहीं (याद रखें की पुरुष प्रधान समाज के नियमों को औरतें ही लागू करती हैं) बस वर्तमान में जीती रहेगी. स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर स्त्रियों को ये बालिका वधू या उसके बारे में लिखी बातें क्रोध का पर्याय बन सकती हैं – पर यदि किन्नू हमेशा खुश रही इस परिणय (विवाह) से तो ???? तो क्या उसका जीवन …..बेहतर नहीं होगा उन तथाकथित शिक्षित और बराबरी के अधिकार से सम्पन्न सैकड़ों लड़कियों के घिसटते वैवाहिक जीवन से, जिसमें ईगो की लड़ाईयां ज्यादा हैं ?? जिसमें विवाह प्रेम कम और मुकाबला ज्यादा हो गया है, अधिकारों की बराबरी के कारण. सुखद विवाह की नींव एक दूसरे के आदर, प्रेम और समर्पण पर ही सही बनती है, अधिकारों की बराबरी पर नहीं. फैसला आप करें !!
(KKP do not support Bal Vivah.)
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